मानव सभ्यता के विकास में कुम्हारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. कहा जाता है कि कला का जन्म कुम्हार के घर में ही हुआ है. इन्हें उच्च कोटि का शिल्पकार वर्ग माना गया है.
लेकिन चिंता इस बात की है कि कुम्हार का पहिया अब थमता जा रहा है ।
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अलग अलग क्षेत्र में अलग अलग भाषा होने के कारण इसका उच्चारण समय के साथ अलग होता गया। जैसे मराठी क्षेत्र में कुम्भारे पश्चिमी क्षेत्र में कुम्भार राजस्थान में कुमार तो पश्चिमी राजस्थान में कुम्भार कुम्बार पंजाब हरियाणा के सटे क्षेत्र में गुमार। अमृतसर के कुम्हारों को “कुलाल” या “कलाल” कहा जाता है , यह शब्द यजुर्वेद मे कुम्हार वर्ग के लिए प्रयुक्त हुये है।
कुम्हार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द “कुंभ”+”कार” से हुई है. “कुंभ” का अर्थ होता है घड़ा या कलश. “कार’ का अर्थ होता है निर्माण करने वाला बनाने वाला या कारीगर. इस तरह से कुम्हार का अर्थ है- “मिट्टी से बर्तन बनाने वाला”.
भांडे शब्द का प्रयोग भी कुम्हार जाति के लिए किया जाता है. भांडे संस्कृत के शब्द “भांड” से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- बर्तन.
आरक्षण की व्यवस्था के अंतर्गत कुम्हार जाति को अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात में इन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.मध्य प्रदेश के छतरपुर, दतिया, पन्ना, सतना, टीकमगढ़, सीधी और शहडोल जिलों में इन्हें अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है!
यह जाति भारत के सभी प्रांतों में पाई जाती है
पारंपरिक रूप से यह मिट्टी के बर्तन, खिलौना, सजावट के सामान और मूर्ति बनाने की कला से जुड़े रहे हैं.
हनुमानगढ़| कुम्हारसमाज की बैठक रविवार को जंक्शन स्थित श्री प्रजापति धर्मशाला में हुई।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री फॉर्मलाइजेशन ऑफ़ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज स्कीम वर्ष 2020 में भारत सरकार ने लांच की थी,
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