मानव सभ्यता के विकास में कुम्हारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. कहा जाता है कि कला का जन्म कुम्हार के घर में ही हुआ है. इन्हें उच्च कोटि का शिल्पकार वर्ग माना गया है.
कुम्हार जाति का इतिहास लिखित नहीं है लेकिन धर्म ग्रंथों और इतिहास से संबंधित पुस्तकों में कुम्हारों के बारे में उल्लेख किया गया है. प्राचीन ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि बहुत प्रारंभिक काल से ही मिट्टी के बर्तन उपयोग में थे. इससे इस बात का पता चलता है कि कुम्हार जाति निश्चित रूप से एक प्राचीन जाति है. कुम्हार जाति की उत्पत्ति के बारे में अनेक मान्यताएं हैं. आइए उनके बारे में विस्तार से जाने.
वैदिक मान्यताओं के अनुसार, कुम्हार की उत्पत्ति त्रिदेव यानी कि सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा, पालनहार भगवान विष्णु और संहार के अधिपति भगवान शिव से हुई है. सृष्टि के आरंभ में त्रिदेव को यज्ञ करने की इच्छा हुई. यज्ञ के लिए उन्हें मंगल कलश की आवश्यकता थी. तब प्रजापति ब्रह्मा ने एक मूर्तिकार कुम्हार को उत्पन्न किया और उसे मिट्टी का घड़ा यानी कलश बनाने का आदेश दिया. कुम्हार ने ब्रह्मा जी से कलश निर्माण के लिए सामग्री और उपकरण उपलब्ध कराने की प्रार्थना की. जब भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चाक के रूप में उपयोग करने के लिए दिया. शिव जी ने धुरी के रूप में प्रयोग करने के लिए अपना पिंडी दिया. ब्रह्मा जी ने धागा (जनेऊ), पानी के लिए कमंडल और चक्रेतिया दिया. इन सभी सामग्री और उपकरण की मदद से फिर कुम्हार ने मंगल कलश का निर्माण किया जिससे यज्ञ संपन्न हुआ.