मानव सभ्यता के विकास में कुम्हारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. कहा जाता है कि कला का जन्म कुम्हार के घर में ही हुआ है. इन्हें उच्च कोटि का शिल्पकार वर्ग माना गया है.
यदि कुम्हार ना होता तो समाज में कोई भी त्योहार, पूजा पाठ, शादी ब्याह आदि कोई भी कार्य संपन्न नहीं हो पाते। इसलिए कुम्हार को प्रजापति कहा गया है, क्योंकि इसके बिना कोई भी रीति रिवाज संपन्न नहीं हो सकते थे।
दीपावली का नाम कुम्हार के नाम पर पड़ा
जब भगवान राम लंका विजय कर अयोध्या आये तो उनके स्वागत में अयोध्यावासियों से ने दीये(दीपक) जला कर प्रसन्नता प्रकट की। क्या आप जानते है यदि कुम्हार न होता तो दीपावली त्यौहार नहीं मनाया जा सकता था, क्योंकि दीपक का निर्माण कुम्हार द्वारा किया जाता है, इसलिए दीपावली का नाम कुम्हार द्वारा बनाए गए दीपक के नाम पर पड़ा।
दही हांडी त्यौहार का नाम कुम्हार के नाम पर पड़ा
दीपावली की ही तरह दही हांडी त्यौहार का नाम कुम्हार समाज के नाम पर रखा गया है। हांडी को बनाने वाला एक कुम्हार ही होता है, वह मिट्टी का प्रयोग करके हांडी का निर्माण करता है। यदि कुम्हार हांडी का निर्माण ना करता तो दही हांडी प्रथा से समाज वंचित रह जाता।
करवा चौथ का नाम कुम्हार के कारण
जी हाँ यह बात बिल्कुल सत्य है करवा चौथ त्यौहार के पीछे भी कुम्भकार समाज का कारण है, एक कुम्भकार ही मिट्टी का प्रयोग कर करवे(कुम्भ, कलश) का निर्माण करता है। भारत में प्रतिवर्ष करवाचौथ बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में मिट्टी के कलश लोगो द्वारा खरीदे जाते है। यह सब कुम्हार के कारण ही संभव हुआ है, यदि कुम्हार करवे का निर्माण न करता तो करवा चौथ का त्योहार लोग मनाने से वंचित रह जाते।
हुक्के का निर्माणकर्ता
हुक्का समाज में भाईचारे का प्रतीक माना जाता है, गाँव के बड़े बुजुर्ग साथ में बैठकर हुक्का पीते है। लेकिन क्या आप जानते है कि हुक्के का निर्माण करने वाला कुम्हार ही था। हुक्के का शिल्पकार कुम्भकार समाज द्वारा ही किया गया । हुक्के की चिलम और पानी भरने के लिए हुक्का का निर्माण मिट्टी का प्रयोग करके कुम्हार द्वारा ही किया गया, तब जाकर हुक्के का आनंद समाज ने प्राप्त किया।
कुंभ मेले का नाम कुम्हार के नाम पर रखा गया
जब देवता और राक्षस समुद्र मंथन कर रहे थे, तब मंथन से एक कुम्भ प्रकट हुआ था जिसमें अमृत भरा हुआ था। जहाँ जहाँ पर उस कुम्भ से अमृत छलक कर गिरा उस जगह कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। एक कुंभ का निर्माण एक कुंभकार ही करता है, मंथन में जिस पात्र में अमृत निकला था वह एक कुंभ था, इसलिए कुंभकार के नाम पर ही प्रसिद्ध मेला कुंभ का नाम रखा गया। अगर कुम्भकार न होता तो कुंभ मेला का आयोजन असंभव था।
दीपक(दीये) का आविष्कार कर संसार को उजाला प्रदान किया
अगर प्रजापति दीपक ना बनाता तो समस्त संसार को अंधकार में जीवन व्यतीत करना पड़ता और दुनिया के बहुत सारे कार्य अधूरे रह जाते। क्योंकि सूर्यास्त के पश्चात रात को घोर अंधकार हो जाता है, ऐसे में प्रकाश की अत्यंत आवश्यकता पड़ती है। इसलिए मानव कल्याण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए कुम्हार ने सभी मनुष्य जाति के लिए मिट्टी से दीपक का आविष्कार किया। इससे सभी के लिए रात्रि में प्रकाश करने की व्यवस्था हो गई, सायकाल व रात्रि के समय दीपक जलाकर लोग घर का कामकाज, पढ़ाई, मनोरंजन आदि करने लगे।
प्रजापति के दीपक का प्रयोग सभी पूजा अनुष्ठान में किया जाता है
प्रजापति के बिना कोई भी हिन्दू पूजा पद्धति अधूरी है, प्रत्येक पूजा अनुष्ठान करने के लिए मिट्टी से बने बर्तन की आवश्यकता होती है, इसमें विशेषकर मिट्टी के दीपक एवं कलश तो अत्यंत आवश्यक होता है।
यज्ञ में प्रजापति के नाम की आहुति दी जाती है
सनातन धर्म में कोई भी पवित्र कार्य करने से पहले यज्ञ करने का विधान है, यज्ञ के बिना कोई भी द्वारा ही पूजा पाठ व अनुष्ठान पूर्ण नहीं माना जाता है। यज्ञ करने के लिए विभिन्न प्रकार के वेद मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, ये मंत्र कोई साधारण नहीं होते इनका एक विशेष महत्व होता है। यज्ञ मंत्रों में प्रजापति नाम से भी मंत्र कहे जाते है।