मानव सभ्यता के विकास में कुम्हारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. कहा जाता है कि कला का जन्म कुम्हार के घर में ही हुआ है. इन्हें उच्च कोटि का शिल्पकार वर्ग माना गया है.
कुम्हार जाति की उत्पत्ति प्राचीनकाल में मिट्टी के बर्तन बनाने के कार्य से जुड़ी है, और वे मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं. कुम्हार समुदाय विभिन्न क्षेत्रों में कई नामों से जाना जाता है, जैसे कि प्रजापति, कुंभकार, कुंभार, कुमार आदि. कुछ कुम्हारों को अलग-अलग उप-जातियों के रूप में भी जाना जाता है, जैसे कि पंजाब में बागड़ी कुम्हार या मारू कुम्हार. कुम्हार समुदाय को अलग-अलग क्षेत्रों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) या अनुसूचित जाति (SC) के रूप में भी सूचीबद्ध किया गया है
उत्पत्ति:
कुम्हार समुदाय की उत्पत्ति प्राचीन काल में, जब मिट्टी के बर्तन बनाना एक महत्वपूर्ण व्यवसाय था, से हुई थी.
वे खुद को वैदिक भगवान प्रजापति का वंशज मानते हैं, इसलिए उन्हें प्रजापति भी कहा जाता है.
कुम्हार शब्द की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न मत हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह "कुंभ" शब्द से संबंधित है, जिसका अर्थ है मिट्टी का बर्तन.
परंपराएं:
कुम्हार समुदाय के लोग विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का पालन करते हैं.
कुछ कुम्हार समुदायों में, उनकी कुलदेवी श्री यादे माता को पूजा जाता है.
कुछ कुम्हार समुदायों में, वे गोत्र बहिर्विवाह का पालन करते हैं, जिसका अर्थ है कि वे अपनी ही गोत्र के बाहर शादी करते हैं.