मानव सभ्यता के विकास में कुम्हारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. कहा जाता है कि कला का जन्म कुम्हार के घर में ही हुआ है. इन्हें उच्च कोटि का शिल्पकार वर्ग माना गया है.
कुम्हार, भारत, नेपाल, पाकिस्तान, और बांग्लादेश में पाए जाते हैं. भारत के सभी प्रांतों में कुम्हारों की मौजूदगी है.
महाराष्ट्र के पुणे, सातारा, सोलापुर, सांगली, और कोल्हापुर ज़िलों में कुम्हार ज़्यादातर पाए जाते हैं.
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अलग अलग क्षेत्र में अलग अलग भाषा होने के कारण इसका उच्चारण समय के साथ अलग होता गया। जैसे मराठी क्षेत्र में कुम्भारे पश्चिमी क्षेत्र में कुम्भार राजस्थान में कुमार तो पश्चिमी राजस्थान में कुम्भार कुम्बार पंजाब हरियाणा के सटे क्षेत्र में गुमार। अमृतसर के कुम्हारों को “कुलाल” या “कलाल” कहा जाता है , यह शब्द यजुर्वेद मे कुम्हार वर्ग के लिए प्रयुक्त हुये है।
कुम्हार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द “कुंभ”+”कार” से हुई है. “कुंभ” का अर्थ होता है घड़ा या कलश. “कार’ का अर्थ होता है निर्माण करने वाला बनाने वाला या कारीगर. इस तरह से कुम्हार का अर्थ है- “मिट्टी से बर्तन बनाने वाला”.
कुम्हार जाति को प्रजापति के नाम से भी जाना जाता है. कुम्हार खुद को वैदिक भगवान प्रजापति का वंशज मानते हैं.
आरक्षण की व्यवस्था के अंतर्गत कुम्हार जाति को अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात में इन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.मध्य प्रदेश के छतरपुर, दतिया, पन्ना, सतना, टीकमगढ़, सीधी और शहडोल जिलों में इन्हें अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है!
महाकुंभ मेला 2025 की शुरुआत 13 जनवरी से होगी। इसका समापन 26 फरवरी को होगा। महाकुंभ मेला 45 दिनों तक चलेगा। यह आयोजन प्रयागराज में होगा।
हनुमानगढ़| कुम्हारसमाज की बैठक रविवार को जंक्शन स्थित श्री प्रजापति धर्मशाला में हुई।
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